शाइ'र बने हैं डॉक्टर जो डॉक्टर न थे मंज़िल उन्हें मिली जो शरीक-ए-सफ़र न थे गेसू-ए-यार पहले तो यूँ मुख़्तसर न थे फैशन ही कुछ तवील था या बारबर न थे आए मिरी लहद पे वो ग़ैरों की कार में आँचल तमाम ख़ुश्क था रुख़्सार तर न थे ख़ाना-ब-दोश अगर रहा मजनूँ तो क्या हुआ ये वो ज़माना था कहीं सहरा में घर न थे उस वक़्त भी पहुँचती थी घर घर में हर ख़बर जिस वक़्त रेडियो न था ये तार-घर न थे सुरख़ाब के थे पर लगे गुल की कुलाह में बुलबुल का उस में ख़ून था बुलबुल के पर न थे