बुलवाता है अक़ब से मिरा क़ाफ़िला मुझे कैसा मिला है तुंद-वरी का सिला मुझे फ़ुर्क़त के दिन गुज़ारना यूँ तो मुहाल था इक तेरी याद ने ही दिया हौसला मुझे ये और बात है कि मेरा ज़र्फ़ तंग था अपनी तरफ़ से तू ने तो सब कुछ दिया मुझे जब गर्दिश-ए-फ़लक से न कुछ बात बन सकी दुनिया-ए-रंग-ओ-बू का बनाया ख़ुदा मुझे गो फ़र्श पर हूँ फिर भी तसव्वुर में अर्श है देखा तिरा ख़याल कहाँ ले गया मुझे तेरे करम का ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया दुनिया भी कह रही है क़तील-ए-जफ़ा मुझे 'बिस्मिल' की आरज़ूएँ तो पामाल कर चुके अब दे रहे हो हौसला-ए-मुद्दआ मुझे