बुराई क्या है तुम इल्ज़ाम दो बुराई का बशर हूँ मैं मुझे दावा नहीं ख़ुदाई का किया है सज्दा कभी या नहीं किया ख़ुश हूँ जबीं पे दाग़ नहीं सज्दा-ए-रियाई का किसी के इश्क़ में दीवाने हम न गर होते तो राज़ खुल नहीं सकता था पारसाई का ज़रा तुम अब कहीं छुप जाओ हर तड़प लौ हैं कि याद आया है मुझ को मज़ा जुदाई का नहीं है मेरी किसी और की है ये भी हदीस क़ुसूर-वार अगर हूँ मैं ख़ुद-सताई का जिसे यक़ीं है कि उस के नसीब में तुम हो गुनाह क्यूँ वो करे क़िस्मत-आज़माई का रवाँ-दवाँ हूँ मुझे अपनी धुन में होश कहाँ बहाना ले के जो बैठूँ शिकस्ता-पाई का उसी की राह में काँटे बिछाए जाते हैं नसीब उज़्र जिसे है बरहना-पाई का किसे है इल्म नसीबों में मिरे आप नहीं ख़याल छोड़ दूँ क्यूँ क़िस्मत-आज़माई का जो इश्क़ आम है मेरे लिए है नंग-ए-हयात मदार और है मेरी ग़ज़ल-सराई का बड़ा मज़ा था तड़पने में तिलमिलाने में न भूलता है न भूलेगा दिन जुदाई का चमन हो और शब-ए-महताब-ओ-हल्क़ा-ए-अहबाब मज़ा जभी है 'जिगर' कुछ ग़ज़ल-सराई का