जिगर में दर्द तो है दिल में इज़्तिराब तो है तुम्हारे ग़म में मिरी ज़िंदगी ख़राब तो है मैं सिर्फ़ तीरा-शबी पर यक़ीं नहीं रखता अभी ज़मीं पे चमकने को आफ़्ताब तो है अभी सुरूर के अस्बाब पाए जाते हैं कि मय-कदे में सुराही तो है शराब तो है हर एक शख़्स ज़माने में इंक़िलाबी है कि इंक़िलाब नहीं फ़िक्र-ए-इंक़िलाब तो है गुज़र रही है तसव्वुर में ज़िंदगी अपनी अब 'आरज़ू' न सही आरज़ू का ख़्वाब तो है