बुत-गर है न कोई बुत-शिकन है सब वहम-ओ-गुमान-ए-बरहमन है ये कौन शरीक-ए-अंजुमन है आँखों को भी हसरत-ए-सुख़न है आसाँ तो है जू-ए-शीर लेकिन कुछ और ही अज़्म-ए-कोहकन है ऐ आतिश-ए-दिल अदब है लाज़िम मुझ में भी वो बू-ए-पैरहन है वीरान सी हो चली हैं राहें रहबर है न कोई राहज़न है ए'जाज़-ए-ग़ज़ल कि ख़ुद 'रविश' से वो जान-ए-कलाम हम-सुख़न है