ये कर्ब का एहसास मुसलसल मिरे अल्लाह कर देगा किसी दिन मुझे पागल मिरे अल्लाह बिखरे हुए टुकड़ों को समेटूँ भी कहाँ तक किस तरह करूँ ख़ुद को मुकम्मल मिरे अल्लाह हर ज़ेहन जिहालत के अंधेरों का है मस्कन हर हाथ में है इल्म की मशअ'ल मिरे अल्लाह लाशों के हर एक शहर में बाज़ार सजे हैं हर मोड़ पे है इक नया मक़्तल मिरे अल्लाह हालात से हूँ बरसर-ए-पैकार अभी तक गो जिस्म में बाक़ी नहीं कस-बल मिरे अल्लाह मीलों नहीं आसार कोई दश्त-ए-यक़ीं के हर सम्त है तश्कीक की दलदल मिरे अल्लाह सरमाया-ओ-अस्बाब जिसे चाहे उसे दे 'राही' को बस इक सब्र-ओ-तवक्कुल मिरे अल्लाह