बुत-गरी-ए-जमाल में गुज़रा अहद-ए-कुफ़्र एक हाल में गुज़रा वक़्त गुज़रा जो बे-ख़याली में वो तिरे ही ख़याल में गुज़रा कुछ कटा वक़्त रंज-ए-दूरी में कुछ ख़याल-ए-विसाल में गुज़रा हाए वो ज़ख़्म जिन का मौसम-ए-गुल दहशत-ए-इंदिमाल में गुज़रा फिर धड़कने लगा है दिल अपना क्या कहूँ क्या ख़याल में गुज़रा निगह-ए-दोस्त का भी मौसम-ए-लुत्फ़ दिल ही की देख-भाल में गुज़रा एक लम्हे में कितने साल कटे एक लम्हा भी साल में गुज़रा