सब कुछ कारोबारी है लहजा तक बाज़ारी है चेहरों पर चेहरों का बोझ कैसी दुनिया-दारी है कहते हैं आसान है सब करने में दुश्वारी है रिश्ते-नाते रस्म-ओ-रिवाज दीन से दुनिया भारी है हम हैं दूर सियासत से हम को इज़्ज़त प्यारी है उस को पा कर ख़ुद खो जाऊँ कैसी ये बीमारी है है मशहूर भी रुस्वा भी वो 'एजाज़' अंसारी है