बुतो ये शीशा-ए-दिल तोड़ दो ख़ुदा के लिए जो संग-दिल हो तो क्या चाहिए जफ़ा के लिए सवाल यार से कैसा कमाल-ए-उल्फ़त का कि इब्तिदा भी तो है शर्त इंतिहा के लिए ख़ुदा से तुझ को सनम माँगते तो मिल जाता मगर अदब ने इजाज़त न दी दुआ के लिए अज़ाब-ए-आतिश-ए-फ़ुर्क़त से काँपता था दिल हज़ार शुक्र जहन्नम मिला सज़ा के लिए न दिल लगा के हुआ मुझ से इश्क़ में परहेज़ बिगड़ गया जो किसी ने कहा दवा के लिए मिला उन्हें भी तलव्वुन मुझे भी यक-रंगी ख़ुसूसियत न रही सरसर ओ सबा के लिए ख़ुदा ने काम दिए हैं जुदा जुदा सब को सनम जफ़ा के लिए हैं तो हम वफ़ा के लिए जहाँ-नवर्द रहे हम तलाश-ए-मतलब में चले न एक क़दम ग़ैर-ए-मुद्दआ के लिए मुशाइरा में पढ़ो शौक़ से ग़ज़ल 'बीमार' कि मुस्तइद हैं सुख़न-संज मरहबा के लिए