बुतों की आँख में क्या ख़्वाब झिलमिलाता है रुका हुआ हो जो मंज़र तो कौन आता है उसी के लम्स से ज़िंदा नुक़ूश हैं मेरे वो अपने हाथ से मूरत मेरी बनाता है वो ज़र्फ़ देख के देता है दर्द चाहत के फिर उस के बा'द मोहब्बत को आज़माता है रिदा-ए-चर्ख़ में टाँके हैं हिज्र ने तारे ये सूत सदियों की ख़ामोशियों ने काता है वफ़ा का लिखता है अंजाम इश्क़ से पहले फिर उस के बा'द नगर प्यार का बसाता है तुम्हारे होते हुए ख़ाक हो गई कैसे तुम्हारे साथ मिरा किस तरह का नाता है रुका हुआ है जो मंज़र वो उस का हिस्सा है भला लकीर से बाहर भी कोई आता है