इक दर्द-ए-कुहन आँख से धोया नहीं जाता जब रंज ज़ियादा हो तो रोया नहीं जाता मिट जाने की ख़्वाहिश को मिटाया नहीं करते खो देने के अरमान को खोया नहीं जाता जलते हुए खलियान में उगती नहीं फ़स्लें ख़्वाबों को कभी आग में बोया नहीं जाता जब हद से गुज़रते हैं तो ग़म ग़म नहीं रहते और ऐसी ज़बूँ-हाली में रोया नहीं जाता तहरीर में बनती नहीं जो बात है दिल में क्या दर्द है शे'रों में समोया नहीं जाता सुलगी हैं मिरी आँख में इक उम्र की नींदें आँगन में लगे आग तो सोया नहीं जाता यूँ छू के दर-ए-दिल को पलट आता है वापस इक वहम मोहब्बत का कि गोया नहीं जाता अब 'सूफिया' इस तरह से दिल पे नहीं बनती अब अश्कों से आँचल को भिगोया नहीं जाता