बुतों से हम ने जा के इल्तिजा की बग़ावत ये ख़ुदा से बरमला की फ़ना जब हो चुकी कश्ती हमारी तो फिर आवाज़ आई नाख़ुदा की झुका दी ये जबीं हर नक़्श-ए-पा पर इलाही ख़ैर मेरे दस्त-ओ-पा की अजब है मेरे क़ातिल का रवय्या इधर तो ख़ूँ किया और फिर दुआ की रहम खाओ मिरे हाल-ए-ज़बूँ पर क़सम हाँ हाँ क़सम तुझ को ख़ुदा की मुबारक सद-मुबारक जो तुझे 'प्रेम' जफ़ा ने शान रख ली है वफ़ा की