इक बे-वफ़ा से प्यार किया हाए क्या किया दुश्मन पे ए'तिबार किया हाए क्या किया दिल ने ब-फ़रत-ए-जोश-ए-जुनूँ उन के सामने हर राज़ आश्कार किया हाए क्या किया आराइशों से काम रहा जिन को उम्र भर ऐसों का इंतिज़ार किया हाए क्या किया इज़हार-ए-दर्द हिज्र न था हम को कुछ ज़रूर उस बुत को शर्मसार किया हाए क्या किया मेरे जुनून-ए-शौक़ के चर्चे हैं हर कहीं दामन भी तार तार किया हाए क्या किया अब दिल है रस्म-ओ-राह-ए-मोहब्बत से मुन्हरिफ़ फ़िक्र-ए-मआल-ए-कार किया हाए क्या किया तासीर-ए-इज़्तिराब से आख़िर वो कह उठे 'प्रेमी' को बे-क़रार किया हाए क्या किया