बुतों से कुछ न हुआ जो हुआ ख़ुदा से हुआ दवा से कुछ न बना जो हुआ दुआ से हुआ भरम दराज़ी-ए-दामान-ए-यार का न रहा अजीब काम मिरे दस्त-ए-ना-रसा से हुआ दिलों को सब्र-ओ-सुकूँ तो न मिल सका लेकिन कोई तो काम तिरी चश्म-ए-बा-हया से हुआ लगा दी आग सी जंगल में नाब-कारों के ये फ़ाएदा तो मिरी आतिशीं-नवा से हुआ दिलों को इश्क़ ने बख़्शी हयात-ए-ग़म-अफ़ज़ा अजब निशाना ख़ता तीर-ए-बे-ख़ता से हुआ क़लंदरों ने उलट दी बिसात-ए-मय-ख़ाना न रिंद से हुआ और कुछ न पारसा से हुआ मुख़ालिफ़ों की भी जो दुश्मनी से हो न सका वो काम इक मिरे दम-साज़-ओ-आश्ना से हुआ न कुछ भी कर सके असहाब-ए-फ़ील थे तो बहुत जो कुछ हुआ तिरे दर्वेश-ए-बे-नवा से हुआ घुटन तो दिल की रही क़स्र-ए-मरमरीं में भी न रौशनी से हुआ कुछ न कुछ हवा से हुआ वो एक क़त्ल का इल्ज़ाम सर पे था सो रहा क़िसास से न हुआ कुछ न ख़ूँ-बहा से हुआ