बुत-परस्ती के सनम-ख़ाने का आसार न तोड़ काबा-ए-दिल मिरा मस्त-ए-मय-ए-पिंदार न तोड़ अहद-ए-मीसाक़ का लाज़िम है अदब ऐ वाइ'ज़ है ये पैमान-ए-वफ़ा रिश्ता-ए-ज़ुन्नार न तोड़ मोहतसिब संग पे तू शीशा-ए-मय को न पटक दिल-ए-रिंदान-ए-मय-आशाम को ज़िन्हार न तोड़ रहम कर रहम कि ये चश्म-ए-चमन का है चराग़ जल्वा-ए-गुल से है ज़ीनत उसे ऐ यार न तोड़ तौबा करनी तुझे वाजिब ही न थी ऐ 'साहिर' वो जो होना था हुआ अब उसे बेकार न तोड़