ये नहीं कसरत-ए-आलाम से जल जाते हैं दिल तमन्ना-ए-ख़ुश-अंजाम से जल जाते हैं उन से पूछे कोई मफ़्हूम-ए-हयात-ए-इंसाँ मक़बरों में जो दिए शाम से जल जाते हैं ज़िक्र आता है मिरा अहल-ए-मोहब्बत में अगर मेरे अहबाब मिरे नाम से जल जाते हैं शम्अ' जलती है तो रो देती है सोज़-ए-ग़म से और परवाने तो आराम से जल जाते हैं शो'ला-ए-बर्क़ से हम-राह-ए-नशेमन अक्सर गुलिस्ताँ गर्दिश-ए-अय्याम से जल जाते हैं