ब-वस्फ़-ए-शौक़ भी दिल का कहा नहीं करते फ़रोग़-ए-क़ामत-ओ-रुख़ की सना नहीं करते शिकस्त-ए-अहद-ए-सितम पर यक़ीन रखते हैं हम इंतिहा-ए-सितम का गिला नहीं करते कुछ इस तरह से लुटी है मता-ए-दीदा-ओ-दिल कि अब किसी से भी ज़िक्र-ए-वफ़ा नहीं करते इसी लिए हैं सज़ावार-ए-जौर-ए-बर्क़-ए-सितम कि हक़्क़-ए-ख़िदमत-ए-गुलचीं अदा नहीं करते मज़ाक़-ए-कोहकनी हो कि दश्त-पैमाई जिन्हें तुम्हारी तलब हो वो क्या नहीं करते वो आश्ना-ए-ग़म-ए-काइनात क्या होंगे जो ख़ुद को आप का दर्द-आश्ना नहीं करते ग़म-ए-हबीब ग़म-ए-ज़िंदगी ग़म-ए-दौराँ किसी मक़ाम पे हम जी बुरा नहीं करते