चाक-दामन न हुए चाक-गरेबान हुए हम तिरे बाद बहर-हाल परेशान हुए बारहा की है तलब दाद-ए-वफ़ा हम ने भी दोस्तो हम भी कई बार पशेमान हुए जिसे देखो वो फ़क़ीरों को झिड़क देता है अह्ल-ए-दुनिया न हुए आप के दरबान हुए हम-नशीं क़ह्त-ए-मुरव्वत की तबाही मत पूछ शहर के शहर मिरे सामने वीरान हुए मौत लिक्खी ही नहीं थी तो कहाँ से मरता मुफ़्त 'इशरत' मिरे अहबाब परेशान हुए