दिल-ए-राहत-तलब बेज़ार भी है ये दीवाना ज़रा हुशियार भी है हमारी बात की ताईद कर के हमारी बात से इंकार भी है लगा कर दिल की बाज़ी सोचते हैं अगर जीते तो अपनी हार भी है तबीअत ही नहीं मौजूद वर्ना चमन में फूल भी है ख़ार भी है तुम्हें इस बात पर हैरत तो होगी कि मुझ को ज़िंदगी से प्यार भी है बहुत आसान है तर्क-ए-मोहब्बत मगर 'इशरत' ज़रा दुश्वार भी है