चारागर ने खेल उल्टा कर दिया इक पुराना ज़ख़्म गहरा कर दिया उस ने भी पूछा नहीं फिर क्या हुआ मुख़्तसर हम ने भी क़िस्सा कर दिया ज़हर से लबरेज़ इस माहौल ने आँसुओं का रंग नीला कर दिया अब हमें रोने की आज़ादी मिली क़हक़हों ने काम आधा कर दिया आइने में भी नज़र आता है तू क्या मुझे भी अपने जैसा कर दिया देख मुर्शिद ने तिरे बीमार को क़ुल हुवल्लह पढ़ के अच्छा कर दिया क्या ग़ज़ब की है तिरी कूज़ा-गरी कैसे कैसों को ही कैसा कर दिया जिस की लौ से जल गया मेरा मकाँ उस दिए ने तो अंधेरा कर दिया मैं तो एक इंसान हूँ मजबूर हूँ तू ख़ुदा है तू ने ये क्या कर दिया