ख़त्म तेरी याद का हर सिलसिला कैसे करूँ दूर रह कर मैं तुझे ख़ुद से जुदा कैसे करूँ पर समेटे ख़ुद ही बैठा है परिंदा इक तरफ़ जो क़फ़स में ही नहीं उस को रिहा कैसे करूँ देखना और देख कर बस देखते रहना तुझे इस तसलसुल की बता मैं इंतिहा कैसे करूँ मुस्तक़िल दीवार से मैं ने लगा रक्खे हैं कान इस में चुनवाई गई चुप को सदा कैसे करूँ देखती रहती हूँ इन को सोचती रहती हूँ ये तेरी आँखों की ज़बाँ का तर्जुमा कैसे करूँ जा रहा है जाए वो मैं किस लिए रोकूँ उसे ऐ मिरे दिल बेवफ़ा को बा-वफ़ा कैसे करूँ ऐन मुमकिन है कि मुझ को ख़ुद-कुशी करनी पड़े वर्ना इतने सानेहों का हक़ अदा कैसे करूँ आज़माइश की ज़रूरत हो न जिस में 'आइशा' इश्क़ में उस मरहले की इब्तिदा कैसे करूँ