चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है ब-शिद्दत क़लक़ है निहायत त'अब है मरीज़-ए-मोहब्बत तिरा जाँ-ब-लब है तजाहुल सितम है तग़ाफ़ुल ग़ज़ब है वो आफ़त है आफ़त है आफ़त है आफ़त ग़ज़ब है ग़ज़ब है ग़ज़ब है ग़ज़ब है गली यार की है क़दम रख्खूँ क्यूँ-कर चलूँ सर के बल याँ मक़ाम-ए-अदब है जो अबरू दिखाया तो आरिज़ भी दिखला वो क़ुरआन है ये हिलाल-ए-रजब है हुई सुब्ह-ए-पीरी कटी अब जवानी ये जलना फ़क़त शम्अ-साँ शब की शब है वो ज़ुल्फ़-ए-सियह है कि मुश्क-ए-ख़ुतन है नहीं ख़त सवाद-ए-दयार-ए-हलब है खुला कुछ न मुझ पर न आने का मंशा जिहत कुछ तो फ़रमाइए क्या सबब है जो शजरा था मजनूँ का शजरा है मेरा जो था क़ैस का सिलसिला वो नसब है ग़नीमत समझ वक़्त-ए-फ़ुर्सत को ग़ाफ़िल न हाथ आएगा फिर ये मौक़ा जो अब है ख़ुदा की ख़ुदाई का जल्वा है ओ बुत ये हुस्न-ए-जवानी नहीं शान-ए-रब है करूँ क्यूँ न सामान-ए-इशरत मुहय्या शब-ए-वस्ल-ए-दिलबर उरूसी की शब है जिसे लोग कहते हैं शाह-ए-ख़ुरासाँ वो बे-शुबह इबन-ए-अमीर-ए-अरब है ग़ुलाम उस का हूँ जो है कौसर का साक़ी जभी 'रिंद' मय-ख़्वार मेरा लक़ब है