सिर्फ़ मेरे लिए नहीं रहना तुम मिरे बा'द भी हसीं रहना पेड़ की तरह जिस जगह फूटा उम्र-भर है मुझे वहीं रहना मश्ग़ला है शरीफ़ लोगों का सूरत-ए-मार-ए-आस्तीं रहना दिली उजड़ी उदास बस्ती में चाहते थे कई मकीं रहना मर न जाए तुम्हारी फुलवारी क़ार्या-ए-ज़ख्म के क़रीं रहना मुस्कुराता हूँ आदतन 'असलम' कौन समझे मिरा ग़मीं रहना