चाहतों के ज़वाल पर चुप हूँ दिल के हर इक मलाल पर चुप हूँ दे गए धोका जो मोहब्बत में मैं तो उन के कमाल पर चुप हूँ दे सके नाँ जवाब तुम जिस का आज भी उस सवाल पर चुप हूँ तुम को चाहत की चाह मारेगी हाए तोते की फ़ाल पर चुप हूँ क्या कहूँ तुझ से ऐ मिरे हमदम मैं तो अपनों की चाल पर चुप हूँ जब क़लम की रवानियाँ देखीं उस के लफ़्ज़ों के जाल पर चुप हूँ अक्स उस का मुझे दिखाता है आइने के ख़याल पर चुप हूँ आबगीना है टूट जाएगा दिल की ऐसी मिसाल पर चुप हूँ जब क्रोना की है वबा फैली दर्द के ऐसे साल पर चुप हूँ मन का पंछी ये 'शाज़' कहता है मैं मोहब्बत की डाल पर चुप हूँ