फिर उगे एक आफ़्ताब नया और फूलों पे हो शबाब नया लिक्खूँ इस तरह दास्तान-ए-जहाँ गोया हर इक वरक़ हो बाब नया साफ़ कर जो भी थे गुनाहों को ऐ ख़ुदा मुझ से ले हिसाब नया उस की सूरत का जब ख़याल आया दिल में उतरा है माहताब नया उस ने मुझ से अजब सवाल किया था मिरा भी कोई जवाब नया जिस को हम आब-जू समझते थे सामने था वही सराब नया मेरी हस्ती है क्या 'नसीम' ऐसी जैसे हो काँच का हबाब नया