चाहता हूँ इंतिहा-ए-दर्द-ए-दिल मिल गई आख़िर दवा-ए-दर्द-ए-दिल क्या ज़रूरी थी दवा-ए-दर्द-ए-दिल सुन तो लेते माजरा-ए-दर्द-ए-दिल इश्क़ की वज्ह-ए-नदामत कुछ न पूछ दिल है पहलू में ब-जा-ए-दर्द-ए-दिल जिस को दिल लेने पे इतना नाज़ है काश होता आश्ना-ए-दर्द-ए-दिल यूँ नहीं मिटने की 'अख़्तर' ये ख़लिश दिल कहीं आए तो जा-ए-दर्द-ए-दिल