चाहता हूँ कि मिरा दर्द-ए-जिगर और बढ़े तीरगी-ए-शब-ए-ग़म ता-ब-सहर और बढ़े दूर है मुझ से अभी दामन-ए-सद-रंग उन का कारवाँ अश्कों का ऐ दीदा-ए-तर और बढ़े यूँ तो तन्हा ही चला जाऊँगा मैं मंज़िल तक तुम अगर साथ चलो अज़्म-ए-सफ़र और बढ़े कितनी रंगीन है जिस राह पे उट्ठा है क़दम चाहता हूँ कि तिरी राहगुज़र और बढ़े अभी भड़की है कि आती है महक शो'लों की इश्क़ की आग अगर और अगर और बढ़े अभी इस सीने में ज़ख़्मों की जगह बाक़ी है आप की शोख़-अदा शोख़-नज़र और बढ़े