चैन दुनिया में ज़मीं से ता-फ़लक दम भर नहीं दाग़ हैं ये गुल नहीं नासूर हैं अख़्तर नहीं सर रहे या जाए कुछ हम मय-कशों को डर नहीं कौन सा मीना-ए-मय ऐ मोहतसिब बे-सर नहीं वो बुत-ए-शीरीं-अदा करता है मुझ को संगसार ये शकर-पारे बरसते हैं जुनूँ पत्थर नहीं हो रहा है एक आलम तेरे अबरू पर निसार कौन गर्दन है जहाँ में जो तह-ए-ख़ंजर नहीं दम निकलने पर जो आता है नहीं रुकता है फिर देख लो क़स्र-ए-हबाब ऐ अहल-ए-ग़फ़लत दर नहीं आदमी तो क्या वो कहता है निशान-ए-पा से भी क्यूँ पड़ा है मेरे कूचे में तिरा क्या घर नहीं ऐ तसव्वुर क्यूँ बुतों को जमा करता है यहाँ दिल मिरा काबा है कुछ बुत-ख़ाना-ए-आज़र नहीं शिकवा जो बे-नौकरी का करते हैं नादान हैं आप आक़ा है किसी का जो कोई नौकर नहीं है ख़राबात-ए-जहाँ में भी वो साक़ी से नुफ़ूर जो कि ऐ 'नासिख़' ग़ुलाम-ए-साक़ी-ए-कौसर नहीं