चाक दामन भी हुआ चाक-ए-गरेबाँ की तरह

चाक दामन भी हुआ चाक-ए-गरेबाँ की तरह
आँख बरसे है शब-ए-ग़म अब्र-ए-बाराँ की तरह

वाए क़िस्मत छा गई ख़ामोशी दिल में किस क़दर
बुझ गया हूँ मैं चराग़-ए-गोर-ए-वीराँ की तरह

उस गुल-ए-राना की उल्फ़त छुप नहीं सकती कभी
उभरा है दाग़-ए-वफ़ा मेहर-ए-दरख़्शाँ की तरह

है करामत इश्क़ की पहुँचा मैं बाम-ए-अर्श तक
गोया इक दरवेश हूँ मैं अहल-ए-इरफ़ाँ की तरह

इन के वा'दे ने मुझे बख़्शा है ज़ौक़-ए-ज़िंदगी
खिल गया दिल ग़ुंचा-ए-जश्न-ए-बहाराँ की तरह

पूछ मत मुझ से है कैसी लज़्ज़त-ए-सोज़-ए-दरूँ
जाँ-गुदाज़ी है मिरी शम-ए-फ़रोज़ाँ की तरह

घर नहीं दौलत नहीं हुर्मत नहीं सतवत नहीं
हम भी क्या आवारा हैं गरदून-ए-गर्दां की तरह

महफ़िल-ए-याराँ नहीं बज़्म-ए-बहाराँ भी नहीं
हम जिए हैं साकिन-ए-शहर-ए-ख़मोशाँ की तरह

बेकसी चश्म-ए-फ़लक ने दम-ब-दम देखी मिरी
दुनिया में आजिज़ कहाँ मुझ ख़ाना-वीराँ की तरह

अफ़सर-ए-ख़ूबाँ 'जलाली' ठहरा है जब से कोई
गुलशन-ए-दिल ज़ेबा है फ़िरदौस-ए-रिज़वाँ की तरह


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