चाक-दिल हो कोई या ख़ाक-बसर क्या होगा जिस को एहसास नहीं उस को असर क्या होगा हासिल-ए-दर्द ब-जुज़ दीदा-ए-तर क्या होगा नहीं मालूम यहाँ अपना गुज़र क्या होगा पहले आग़ाज़-ए-शब-ए-ग़म तो समझ में आए बाद की बात है हंगाम-ए-सहर क्या होगा देख कर रंग-ए-जहान-ए-गुज़राँ हैराँ हूँ जब ये आलम है इधर का तो उधर क्या होगा ज़िंदगी ज़ौक़-ए-सफ़र तर्क नहीं कर सकती सोच कर क्या करूँ अंजाम-ए-सफ़र क्या होगा आप तो ख़ैर से बरसात का सूरज ठहरे हम ग़रीबों की उमीदों का मगर क्या होगा इस से तो रूह सँवरती है नज़र बनती है कोई जल्वा भी तिरा सर्फ़-ए-नज़र क्या होगा दूर तक वक़्त की राहों में अंधेरा है अभी दिल न सुलगे तो चराग़ों का असर क्या होगा ज़िंदगी और सुकूँ एक खुला धोका है साँस जब तक है कशाकश से मफ़र क्या होगा ख़ून दिल का न हो ता'मीर में जब तक शामिल मो'तबर कोई भी अंदाज़-ए-नज़र क्या होगा वक़्त के साथ चले जाते हैं जाने वाले सोचते रहते हैं सब ज़िंदगी भर क्या होगा 'शौक़' आज़ार-तलब फ़ितरत-ए-दिल है अपनी लाख हम चाहेंगे आराम मगर क्या होगा