चाक-ए-दामन से गरेबाँ और कितनी दूर है ऐ मिरी वहशत बयाबाँ और कितनी दूर है ऐ शब-ए-ग़म गर्दिश-ए-अय्याम की तुझ को क़सम कुछ बता सुब्ह-ए-बहाराँ और कितनी दूर है आ गया हूँ सरहद-ए-इमकान तक ले कर लहू जाने अब सेहन-ए-गुलिस्ताँ और कितनी दूर है आज़माइश से गुज़रता जा रहा हूँ जोश में क्या पता दरिया-ए-इम्काँ और कितनी दूर है बोसा-ए-ज़ंजीर मेरी आख़िरी मंज़िल है अब देखता हूँ मुझ से ज़िंदाँ और कितनी दूर है मैं मशक़्क़त कर रहा हूँ अब ज़मीन-ए-दिल पे भी वो तिरा अक्स-ए-फ़रोज़ाँ और कितनी दूर है रूह की ततहीर कर के देखते जाना 'तराज़' मतला-ए-अनवार-ए-इरफ़ाँ और कितनी दूर है