चाक-ए-दामान-ए-क़बा दाग़-ए-जुनूँ-साज़ बहुत हम ने पाए हैं दर-ए-यार से ए'ज़ाज़ बहुत हम से पूछो कि ग़म-ए-फ़ुर्क़त-ए-याराँ क्या है हम ने देखे हैं शब-ए-हिज्र के अंदाज़ बहुत रात भर चाँद से होती रहें तेरी बातें रात खोले हैं सितारों ने तिरे राज़ बहुत आज क्यूँ पहली सी कुछ वहशत-ए-दिल कोई नहीं आज मद्धम है शब-ए-ग़म तिरा आग़ाज़ बहुत एक हम ही ने समेटी है उदासी तेरी शाम-ए-ग़म हम ने उठाए हैं तिरे नाज़ बहुत