चल दिया वो देख कर पहलू मिरी तक़्सीर का दूसरा रुख़ उस ने देखा ही नहीं तस्वीर का बाक़ी सारे ख़त पे धब्बे आँसुओं के रह गए एक ही जुमला पढ़ा मैं ने तिरी तहरीर का तू ने कैसे लफ़्ज़ होंटों की कमाँ में कस लिए इतना गहरा घाव तो होता नहीं है तीर का उज़्र बाक़ी चाल में है क़ैद गो बाक़ी नहीं पाँव आदी हो गया है इस क़दर ज़ंजीर का आ गई कश्ती भटक कर आब से सू-ए-सराब भर गया रेग-ए-रवाँ से जाल माही-गीर का बात छोटी तो नहीं तुझ से बिछड़ने की है बात फ़ैसला तस्लीम कर लूँ किस तरह तक़दीर का यार लोगों ने उसे कतबा बना डाला 'अदीम' आख़िरी पत्थर बचा जो उम्र की ता'मीर का दोस्तों से भी तअ'ल्लुक़ बन गया है वो 'अदीम' जो तअ'ल्लुक़ है किसी शमशीर से शमशीर का ज़हर की आँखों में रौशन सूरतें दो हैं 'अदीम' शक्ल इक सुक़रात की और एक चेहरा हीर का