चला है ले के मुझे ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा अब इंतिज़ार कर ऐ जान-ए-आरज़ू मेरा मैं बन सका न तेरा ये बजा सही लेकिन किसी को क्यूँ ये गुमाँ हो नहीं है तू मेरा हवा-ए-दश्त बहुत दूर ले गई अक्सर नहीं असीर-ए-चमन ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू मेरा शिकस्त-ए-दिल की तलाफ़ी नज़र से क्या होगी टपक पड़े न तिरी आँख से लहू मेरा मिरी ग़ज़ल के लिए कौन मुंतज़िर है 'रविश' पहुँच गया है कहाँ शौक़-ए-गुफ़्तुगू मेरा