चला हवस के जहानों की सैर करता हुआ मैं ख़ाली हाथ ख़ज़ानों की सैर करता हुआ पुकारता है कोई डूबता हुआ साया लरज़ते आईना-ख़ानों की सैर करता हुआ बहुत उदास लगा आज ज़र्द-रू महताब गली के बंद मकानों की सैर करता हुआ मैं ख़ुद को अपनी हथेली पे ले के फिरता रहा ख़तर के सुर्ख़ निशानों की सैर करता हुआ कलाम कैसा चका-चौंद हो गया मैं तो क़दीम लहजों ज़बानों की सैर करता हुआ ज़ियादा दूर नहीं हूँ तिरे ज़माने से मैं आ मिलूँगा ज़मानों की सैर करता हुआ