चला हूँ घर से मैं अहवाल-ए-दिल सुनाने को वो मुंतज़िर हैं मिरा ज़ब्त आज़माने को रक़ीब साथ है और ज़ेर-ए-लब तबस्सुम है अजब तरह से वो आया है दिल दुखाने को अगरचे बज़्म-ए-तरब में हवस का ग़लबा है मैं आ गया हूँ मोहब्बत के गीत गाने को मैं जा रहा हूँ वहाँ जबकि अज़-रह-ए-तफ़रीह सजी है बज़्म मिरा शौक़ आज़माने को रविश रविश में है अफ़्सुर्दगी की अफ़्ज़ाइश वो फिर भी निकले हैं तफ़रीह-ए-गुल मनाने को जुनून-ए-इश्क़ मिरा जबकि इक हक़ीक़त है अलग करूँगा मैं इस इश्क़ से फ़साने को मैं चाहता था मिरा इश्क़ एक राज़ रहे वो आ गया तो ख़बर हो गई ज़माने को वो जिन से मुझ को तवक़्क़ो थी पासबानी की वो आ गए हैं मिरा आशियाँ जलाने को जनाब-ए-शैख़ की ये वो रुख़ी मआज़-अल्लाह हुई है शब तो चले हैं शराब-ख़ाने को रह-ए-हयात में बहरूपियों से वाक़िफ़ हूँ जो ग़म-गुसार बने मेरा दिल दुखाने को जो बे-ख़बर हैं सरापा वो फिर रहे हैं आज क़दम क़दम पे नई दास्ताँ सुनाने को जिधर निगाह उठाओ रवाँ है ख़ून-ए-जिगर ख़बर नहीं कि ये क्या हो गया ज़माने को