चलाए तीर हैं कितने जवाब देता जा हमारे ज़ख़्मों का कुछ तो हिसाब देता जा जो आ गया है तो अब दिल की ताज़गी के लिए लहू में डूबे हुए कुछ गुलाब देता जा मुझे यक़ीन है दरिया मैं ढूँढ ही लूँगा तू मेरी तिश्ना-लबी को सराब देता जा न देख मेरे अज़िय्यत-नवाज़ लम्हों को मिरे नसीब का मुझ को अज़ाब देता जा जो तू है साक़ी-ए-महफ़िल तो रिंद हम भी हैं हमारे हिस्से की हम को शराब देता जा 'उमर' बताना है नस्लों को ज़िल्लतों का सबब तू अपनी बज़्म के चंग-ओ-रबाब देता जा