चले भी आओ कि दिल को ज़रा क़रार नहीं ख़ुदा गवाह कि अब ताब-ए-इंतिज़ार नहीं नहीं कि दिल पे मोहब्बत में इख़्तियार नहीं नहीं नहीं मुझे फ़िक्र-ए-मआल-ए-कार नहीं ब-क़द्र-ए-जोश-ए-जुनूँ चाक हो गरेबाँ क्या बहार भी तो ब-अंदाज़-ए-बहार नहीं अजीब हाल है इस दौर-ए-ज़र-गरी में कहीं सिवाए दिल कोई दर्द-आश्ना-ए-यार नहीं अब और इस के सिवा एहतियात-ए-इश्क़ हो क्या कि तेरा ग़म मिरी सूरत से आश्कार नहीं न जाने कौन सा आलम है ये मोहब्बत का हमें ख़याल है अपना ख़याल-ए-यार नहीं निगाह-ए-यार ने पहुँचा दिया कहाँ 'अख़्तर' कि हम को अपनी निगाहों का ए'तिबार नहीं