चलिए की राह में हैं शजर साया-दार भी देते हैं दाद आबला-पाई की ख़ार भी नाकामियों के बा'द भी रुकते नहीं क़दम मजबूरियों में रखते हैं हम इख़्तियार भी इंसान ठहरा शो'ला-ओ-शबनम का हम-मिज़ाज जन्नत की आरज़ू है गुनाहों से प्यार भी रातों का सिलसिला हो कि दिन की तजल्लियाँ पाबंद-ए-चश्म-ए-यार हैं लैल-ओ-नहार भी रहने दो अपना हाथ अभी मेरे हाथ में डरता हूँ खो न दूँ कहीं दिल का क़रार भी वा'दे पे उस की कितनी ख़ुशी है न पूछिए आता नहीं है दिल को मगर ए'तिबार भी कह दे ज़माना कुछ भी मुझे ग़म न कर 'नज़ीर' लगता नहीं है जब कि मुझे नागवार भी