जो हमारा शरीक-ए-हाल रहा उस का हर दम हमें ख़याल रहा बे-नियाज़ी थी हर अदा उन की प्यार अपना मगर बहाल रहा हम न घबराए हादसों से कभी तकिया-ए-रब्ब-ए-ज़ुल-जलाल रहा आह मेहनत-कशों की मजबूरी रोज़ी रोटी का ही सवाल रहा हो गई शाहकार हर तख़्लीक़ रू-ब-रू जब तिरा जमाल रहा राह-ए-मंज़िल हुई बहुत आसाँ हम-सफ़र जब भी हम-ख़याल रहा जिस ने चाहा न दिल से अपनों को ज़िंदगी भर वो पुर-मलाल रहा पाई मेराज-ए-ज़िंदगी उस ने फ़िक्र-ओ-फ़न में जो बा-कमाल रहा हम ने मन-मानियाँ न कीं 'नय्यर' आल-ओ-औलाद का ख़याल रहा