चलो के मिल के बदल देते हैं समाजों को मिटा दें सारे ज़माने के बद रिवाजों को फ़क़त दिलों को मिलाने से कुछ नहीं होता बनेगी बात मिलाओगे जब मिज़ाजों को सरों की भीड़ तो अक्सर मचाए हंगामा सँवारो सोच से तुम अपने एहतिजाजों को सुना है हँसने से चेहरे पे नूर आता है कहाँ से पूरा करें इतनी एहतिजाजों को नहीं रहे वो हसीं मय-कदों के जल्वे अब चलो कि ढूँढें ग़मों के नए इलाजों को