चलो माना हमीं बे-कारवाँ हैं जो जुज़्व-ए-कारवाँ थे वो कहाँ हैं न जाने कौन पीछे रह गया है मनाज़िर उल्टी जानिब को रवाँ हैं ज़मीं के ताल सब सूखे पड़े हैं परिंदे आसमाँ-दर-आसमाँ हैं सुना है तिश्नगी भी इक दुआ है लबों पर शब्द जिस के पर-फ़िशाँ हैं खुले सहरा में मत ढूँडो हमें तुम सदा से हम तुम्हारे दरमियाँ हैं