चलते चलते साल कितने हो गए पेड़ भी रस्ते के बूढ़े हो गए उँगलियाँ मज़बूत हाथों से छुटीं भीड़ में बच्चे अकेले हो गए हादिसा कल आइने पर क्या हुआ रेज़ा रेज़ा अक्स मेरे हो गए ढूँढिए तो धूप में मिलते नहीं मुजरिमों की तरह साए हो गए मेरी ख़ामोशी पे थे जो ता'ना-ज़न शोर में अपने ही बहरे हो गए चाँद को मैं छू नहीं पाया मगर ख़्वाब सब मेरे सुनहरे हो गए मेरी गुम-नामी से 'अज़हर' जब मिले शोहरतों के हाथ मैले हो गए