बनाए ज़ेहन परिंदों की ये क़तार मिरा इसी नज़ारे से कुछ कम हो इंतिशार मिरा जो मैं भी आग में हिजरत का तजरबा करता मुहाजिरों ही में होता वहाँ शुमार मिरा फिर अपनी आँखें सजाए हुए मैं घर आया सफ़र इक और रहा अब के ख़ुश-गवार मिरा तमाम उम्र तो ख़्वाबों में कट नहीं सकती बहुत दिनों तो किया उस ने इंतिज़ार मिरा ये मेरा शहर मिरी ख़ामियों से वाक़िफ़ है यहाँ किसी को न आएगा ए'तिबार मिरा ये लोग सिर्फ़ मिरी ज़िंदगी के दुश्मन हैं मुजस्समा ये बनाएँगे शानदार मिरा मिरी बिसात से 'अज़हर' बहुत ज़ियादा थीं तवक़्क़ुआ'त जो रखता था मुझ से यार मिरा