चलते हैं हम भी सू-ए-चमन छा गई घटा साक़ी शराब ले के पहुँच आ गई घटा जल्वा जो अगले लुत्फ़ का दिखला गई घटा अपनी नज़र के सामने लहरा गई घटा पानी बरस चुका था अभी ख़ूब बाग़ में दौर-ए-शराब देख के फिर आ गई घटा इस साल आगे देखिए करती है क्या सुलूक अगले बरस तो ख़ूब सा रुलवा गई घटा ऐसे ख़याल-ए-ऐश में होते हैं दिन बसर देखा जिधर उठा के नज़र छा गई घटा अब भी न मय-कशी का करूँ शग़्ल ऐ 'वहीद' आई बहार फूल खिले छा गई घटा