क्या मै-कदा है इश्क़ हक़ीक़त में यार का बे-ख़ुद का है जो हाल वही होशियार का क्या महव-ए-इश्क़ हूँ मुझे इतनी नहीं ख़बर फ़ुर्क़त की शब है रोज़ है या वस्ल-ए-यार का जो चाहे वो सुलूक करे हसरत-ए-बक़ा मैं और साथ ज़िंदगी-ए-मुस्तआ'र का पहलू में अब कहाँ है वो दिल वो हुजूम-ए-यास क्या जल्द मिट गया है निशान उस दयार का बातें भी हैं तो वो हैं कि हो और ग़म सिवा क्या जानें किस तरफ़ को है दिल ग़म-गुसार का गुलशन में मुंतशिर तो हैं औराक़-ए-गुल तमाम कैसा था कुछ न पूछो ज़माना बहार का