चलते हुए इक रोज़ ठहर जाएँगे हम भी दरिया हैं समुंदर में उतर जाएँगे हम भी अब बैठ के ज़ख़्मों से लहू पोंछ रहा है पहले तो वो समझा था कि डर जाएँगे हम भी ये क्या कि हर इल्ज़ाम हमारे ही सर आए आईना बनो तुम तो सँवर जाएँगे हम भी तोड़ेंगे नहीं अपने क़बीले की रिवायत हँसते हुए मक़्तल से गुज़र जाएँगे हम भी भाती है हमें भी दर-ओ-दीवार की ख़ुशबू कुछ ख़्वाब कमा लेंगे तो घर जाएँगे हम भी इख़्लास के रिश्ते ने हमें बाँध रखा है दुश्मन ये समझता था बिखर जाएँगे हम भी शर्मिंदा हुआ घर में वो कुछ देर लगा कर समझा था सदा दे के गुज़र जाएँगे हम भी