है पेश-ए-नज़र शोख़ी-ए-तहरीर किसी की काग़ज़ पे उतर आई है तस्वीर किसी की हासिल है फ़राग़त तो न इतराओ ज़ियादा रहती है न रह पाएगी जागीर किसी की दुनिया जिसे कहते हैं मियाँ जा-ए-अमल है बातों से कहीं बनती है तक़दीर किसी की कम-ज़र्फ़ क़यास अपने पे कर लेते हैं ख़ुद ही हम शे'र में करते नहीं तहक़ीर किसी की किस हाल में यारान-ए-अदम हैं नहीं मालूम आई न ख़बर ता-दम-ए-तहरीर किसी की इस बाब में अहबाब को हासिल है फ़ज़ीलत कब मेरी तरफ़ होती है तश्हीर किसी की लगता है कि दीवानों को रास आ गया ज़िंदाँ मुद्दत से खड़कती नहीं ज़ंजीर किसी की