चलते रहने के लिए दिल में गुमाँ कोई तो हो बे-नतीजा ही सही पर इम्तिहाँ कोई तो हो आसमानों के सितम सहती हैं इस के बावजूद सब ज़मीनें चाहती हैं आसमाँ कोई तो हो मेहरबानों ही से बच कर आए थे तुम दश्त में अब यहाँ भी लग रहा है मेहरबाँ कोई तो हो क़हक़हों को याद रखती ही नहीं दुनिया कभी इस लिए दुख की भी प्यारे दास्ताँ कोई तो हो कर रहा हूँ मैं दरख़्तों से मुसलसल गुफ़्तुगू इस घने जंगल में 'दानिश' हम-ज़बाँ कोई तो हो