अब तक मुझे न कोई मिरा राज़-दाँ मिला जो भी मिला असीर-ए-ज़मान-ओ-मकाँ मिला क्या जाने क्या समझ के हमेशा किया गुरेज़ सौ बार बिजलियों को मिरा आशियाँ मिला उक्ता गया हूँ जादा-ए-नौ की तलाश से हर राह में कोई न कोई कारवाँ मिला मुद्दत में हम ने आप बनाया था इक उफ़ुक़ जाते थे उस तरफ़ कि तिरा आस्ताँ मिला किन हौसलों के कितने दिए बुझ के रह गए ऐ सोज़-ए-आशिक़ी तू बहुत ही गराँ मिला क्या कुछ लुटा दिया है तिरी हर अदा के साथ क्या मिल गया हमें जो ये हुस्न-ए-बयाँ मिला था एक राज़-दार-ए-मोहब्बत से लुत्फ़-ए-ज़ीस्त लेकिन वो राज़-दार-ए-मोहब्बत कहाँ मिला इक उम्र बा'द इसी मुतलव्विन निगाह में कितनी मोहब्बतों का ख़ज़ाना निहाँ मिला अब जुस्तुजू का रुख़ जो मुड़ा है तो मत पुकार सब तुझ को ढूँडते थे मगर तू कहाँ मिला